प्रभात खबर ने खोली पोल - कौन हैं निर्मल बाबा?
मेदिनीनगर के चैनपुर स्थित कंकारी में ईंट भट्ठा शुरू किया. पर
व्यवसाय नहीं चला : गढ़वा में कपड़ा का बिजनेस किया. पर इसमें भी नाकाम रहे
: बहरागोड़ा इलाके में माइनिंग का ठेका भी लिया : रांची : बाबा
जी, मुझे गाड़ी दिला दीजिए.. बाबा जी मैंने जो विश मांगी है, वह भी पूरी कर
दीजिए.. बाबा जी मेरा वर्क टार्गेट पूरा करने का आशीर्वाद दें.. बाबा जी
मेरी परीक्षा चल रही है, अच्छे मार्क्स दिला दें.. मुझे अच्छा घर दिला
दें.. अच्छी नौकरी दिला दें.. रितू से शादी करा दें.. देश के 36 चैनलों पर
सिर्फ एक व्यक्ति से यह इच्छा पूरी करने को कहा जा रहा है. और जिस व्यक्ति
से यह सब कहा जा रहा है, वह हैं निर्मल बाबा.
निर्मलजीत सिंह नरूला उर्फ निर्मल बाबा के इंटरनेट पर तीस लाख से भी अधिक
लिंक्स हैं, पर उनका कहीं कोई विवरण उपलब्ध नहीं है. प्रभात खबर ने निर्मल
बाबा के बारे में कई जानकारियां हासिल की, पर निर्मलजीत से निर्मल बाबा
कैसे बने, यह आज भी रहस्य है.
जानिये बाबा को : निर्मल बाबा दो भाई हैं. बड़े भाई
मंजीत सिंह अभी लुधियाना में रहते हैं. निर्मल बाबा छोटे हैं. पटियाला के
सामना गांव के रहनेवाले. 1947 में देश के बंटवारे के समय निर्मल बाबा का
परिवार भारत आ गया था. बाबा शादी-शुदा हैं. एक पुत्र और एक पुत्री हैं
उनकी. मेदिनीनगर (झारखंड) के दिलीप सिंह बग्गा की तीसरी बेटी से उनकी शादी
हुई. चतरा के सांसद और झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी
के छोटे साले हैं ये. बकौल श्री नामधारी, 1964 में जब उनकी शादी हुई, तो
निर्मल 13-14 वर्ष के थे.
1970-71 में वह मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) आये और 81-82 तक वह यहां रहे.
रांची में भी उनका मकान था. पर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद
भड़के सिख विरोधी दंगे के बाद उन्होंने रांची का मकान बेच दिया और चले गये.
रांची के पिस्का मोड़ स्थित पेट्रोल पंप के पास उनका मकान था.
झारखंड से रिश्ता : निर्मल बाबा का झारखंड से पुराना
रिश्ता रहा है. खास कर पलामू प्रमंडल से. 1981-82 में वह मेदिनीनगर (तब
डालटनगंज) में रह कर व्यवसाय करते थे. चैनपुर थाना क्षेत्र के कंकारी में
उनका ईंट-भट्ठा भी हुआ करता था, जो निर्मल ईंट के नाम से चलता था.
उन्हें जाननेवाले कहते हैं : निर्मल का व्यवसाय ठीक नहीं
चलता था. तब उनके ससुरालवाले मेदिनीनगर में ही रहते थे. हालांकि अभी उनकी
ससुराल का कोई भी सदस्य मेदिनीनगर में नहीं रहता. उनके (निर्मल बाबा के)
साले गुरमीत सिंह अरोड़ा उर्फ बबलू का लाईम स्टोन और ट्रांसपोर्ट का
कारोबार हुआ करता था.
बबलू के मित्र सुमन जी कहते हैं : चूंकि बबलू से मित्रता
थी, इसलिए निर्मल जी को जानने का मौका मिला था. वह व्यवसाय कर रहे थे. कुछ
दिनों तक गढ़वा में रह कर भी उन्होंने व्यवसाय किया था. वहां कपड़ा का
बिजनेस किया. पर उसमें भी नाकाम रहे. बहरागोड़ा इलाके में कुछ दिनों तक
माइनिंग का ठेका भी लिया. कहते हैं..बहरागोड़ा में ही बाबा को आत्मज्ञान
मिला. इसके बाद से ही वह अध्यात्म की ओर मुड़ गये. वैसे मेदिनीनगर से जाने
के बाद कम लोगों से ही उनकी मुलाकात हुई है. जब उनके बारे में लोगों ने
जाना, तब यह चर्चा हो रही है. उन्हें जाननेवाले लोग कहते हैं कि यह चमत्कार
कैसे हुआ, उनलोगों को कुछ भी पता नहीं.
हां, निर्मल बाबा मेरे साले हैं : नामधारी
- निर्मल बाबा आपके रिश्तेदार हैं?
-- हां यह सही है, काफी लोग पूछते हैं, इसके बारे में. मैं स्पष्ट कर दूं कि वह मेरे साले हैं.
- कुछ बतायें, उनके बारे में.
-- 1964 में जब मेरी शादी हुई थी, तो उस वक्त निर्मल 13-14 साल
के थे. पहले ही पिता की हत्या हो गयी थी. इसलिए उनकी मां (मेरी सास) ने कहा
था कि इसे उधर ही ले जाकर कुछ व्यवसाय करायें. 1970-71 में वह मेदिनीनगर
(तब डालटनगंज) आये. 1981-82 तक रहे, उसके बाद रांची में 1984 तक रहे. उसी
वर्ष रांची का मकान बेच कर दिल्ली लौट गये. 1998-99 में बहरागोड़ा में
माइंस की ठेकेदारी ली थी. इसी क्रम में उन्हें कोई आत्मज्ञान प्राप्त हुआ.
इसके बाद वह अध्यात्म की तरफ मुड़ गये. बस इतना ही जानता हूं, उनके बारे
में.
-क्या आइडिया है, निर्मल बाबा के बारे में.
-- देखिए उनके लाखों श्रद्धालु हैं. लोग उनमें आस्था रखते हैं. वैसे कई मुद्दों पर मेरी मतभिन्नता है उनके साथ.
- किस मुद्दे पर है मतभिन्नता.
-- देखिए, मैं कहता हूं कि ईश्वरीय कृपा से यदि कोई शक्ति मिली
है, तो उसका उपयोग जनकल्याण में होना चाहिए. बात अगर निर्मल बाबा की ही
करें, तो आज जिस मुकाम पर वह हैं, वह अगर जंगल में भी रहें, तो श्रद्धालु
पहुंचेंगे. तो फिर प्रचार क्यों? पैसा देकर ख्याति बटोर कर क्या करना है?
जनकल्याण में अधिक लोगों का भला हो. गुरुनानक के शब्दों में कहें, तो
करामात, कहर का दूसरा नाम है. यह दुनिया दुखों का सागर है. यदि आज आप
करामात दिखा रहे हैं. तो स्वाभाविक है कि लोगों की अपेक्षा बढ़ेगी, लंबे
समय तक किसी की अपेक्षा के अनुरूप काम करना संभव नहीं है. मेरी नजर में यह
काम शेर पर सवारी करने जैसा है. इसलिए मैं कहता हूं कि टीवी के माध्यम से
जो प्रचार हो रहा है, उससे अलग राह भी बनानी चाहिए. हालांकि कुछ लोग इस
विचार पर आपत्ति भी जताते हैं. चूंकि हमारा रिश्ता है, इसलिए हम सलाह देते
हैं. जनता के कल्याण का दूसरा रास्ता भी हो.
- क्या व्यक्तिगत तौर पर मिल कर सलाह दी है?
-- हां, जब मुलाकात हुई है, तो इस बात पर चर्चा हुई है. उनके
अपने तर्क होते हैं और मेरे अपने. चूंकि रिश्तेदारी हैं, तो छूटती नहीं.
मेरे मन में जो कुछ चलता है, व्यक्त कर देता हूं. वह आस्था के केंद्र हैं.
ईश्वरीय कृपा से वह लोगों को भला कर रहे हैं. उनके आत्मज्ञान का लाभ अधिक
लोग उठा सकें, यही मेरी कामना है. इस दृष्टिकोण से ही मैं सलाह देता हूं.
कुछ अन्य जानकारियां -
- 30 लाख से भी अधिक रिजल्टस गूगल सर्च में
- 3.48 लाख लाइक करनेवाले फेसबुक पर
- 40 हजारसे अधिक ट्विटर पर फालो करनेवाले
- 36 चैनलों पर देश-विदेश में प्रसारण
- 22 घंटे रोज होता है इन चैनलों पर प्रसारण
-सरेआम जालसाजी कर रहा है?
-फेसबुक पर कई टिप्पणियां : बाबा का फेसबुक अकाउंट
देखेंगे, तो उस पर टिप्पणी करनेवालों की संख्या हजारों में है. संभवत: किसी
एक व्यक्ति के अकाउंट में सबसे ज्यादा कमेंट. तारीफें भी हैं, खिलाफ भी.
ऐसे ही एक फेसबुकिया मित्र धन बहादुर थापा ने टिप्पणी की है..
बाबा कहते हैं कि पूजा में भावना होनी चाहिए, लेकिन जब बिहार की
एक महिला
को देखते ही उन्होंने कहा : तुम छठ पूजा करती हो. वह बोली, हां बाबा करती
हूं. बाबा ने पूछा, कितने रुपये का सूप इस्तेमाल करती हो. वह बोली 10-12
रुपये का. बाबा ने कहा : बताओ 10-12 रुपये के सूप से भला कृपा कैसे आयेगी,
तुम 30 रुपये का सूप इस्तेमाल करो. कृपा आनी शुरू हो जायेगी.
बात यहीं खत्म नहीं हुई.
एक महिला भक्त को उन्होंने पहले समागम में बताया
था कि शिव मंदिर में दर्शन करना और कुछ चढ़ावा जरूर चढ़ाना. अब दोबारा
समागम में आयी उस महिला ने कहा : मैंने मंदिर में चढ़ावा भी चढ़ाया, लेकिन
मेरी दिक्कत दूर नहीं हुई. बाबा बोले, कितने पैसे चढ़ाये, उसने कहा कि 10
रुपये. बाबा ने फिर हंसते हुए कहा कि 10 रुपये में कृपा कहां मिलती है, अब
40 रुपये चढ़ाना, देखना कृपा आनी शुरू हो जायेगी.
अब देखिए, इस महिला को बाबा ने ज्यादा पैसे चढ़ाने का ज्ञान दिया, जबकि एक
दूसरी महिला दिल्ली से उनके पास पहुंची, बाबा उसे देखते ही पहचान गये और
पूछे, शिव मंदिर में चढ़ावा चढ़ाया या नहीं. बोली, हां बाबा चढ़ा दिया.
बाबा ने पूछा, कितना चढ़ाया, वह बोली, आपने 50 रुपये कहा था, वो मैंने चढ़ा
दिया. और मंदिर परिसर में ही जो छोटे-छोटे मंदिर थे, वहां 10- पांच रुपये
चढ़ा दिये. बस बाबा को मौका मिल गया, बोले, फिर कैसे कृपा आनी शुरू होगी,
50 कहा, तो 50 ही चढ़ाना था ना, दूसरे मंदिर में क्यों चली गयी. बस फिर जाओ
और 50 ही चढ़ाना.
क्या मुश्किल है, ज्यादा चढ़ा दो, तो भी कृपा रुक जाती है, कम चढ़ाओ, तो
कृपा शुरू ही नहीं होती है. निर्मल बाबा ऐसा आप ही कर सकते हो, आपके चरणों
में पूरे परिवार का कोटि-कोटि प्रणाम. एक भक्त को बाबा ने भैरो बाबा का
दर्शन करने को कहा. वह भक्त माता वैष्णो देवी पहुंचा और वहां माता के दर्शन
के बाद और ऊपर चढ़ाई करके बाबा भैरोनाथ का दर्शन कर आया. बाद में फिर बाबा
के पास पहुंचा और बताया कि मैंने भैरो बाबा के दर्शन कर लिये, लेकिन कृपा
तो फिर भी शुरू नहीं हुई. बाबा ने पूछा, कहां दर्शन किये, वह बोला, माता
वैष्णो देवीवाले भैरो बाबा का. बाबा ने कहा : यही गड़बड़ है, तुम्हें तो
दिल्ली वाले भैरो बाबा का दर्शन करना था. अब बताओ, जिस बाबा ने कृपा रोक
रखी है, उनके दर्शन न करके, इधर-उधर भटकते रहोगे, तो कृपा कैसे चालू होगी.
भक्त बेचारा खामोश हो गया. यह सब जालसाली नहीं, तो क्या है?
कौन हैं निर्मल बाबा? (भाग नौ) : रांची : भले ही
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में निर्मल बाबा के समागम में भीड़ आ रही है,
पर झारखंड, खास कर रांची में उनका क्रेज काफी कम हो गया लगता है. मीडिया
में खबरें आने के बाद भक्तों ने उनके खाते में पैसे जमा करना बंद कर दिया
है. न तो दसवंद के पैसे जमा हो रहे हैं और न समागम के. राजधानी रांची के एक
प्रमुख बैंक की मुख्य शाखा में 18 अप्रैल को एक भी भक्त नहीं आया. यानी एक
पैसा भी बाबा के खाते में जमा नहीं हुआ है.
पहले इसी शाखा में हर दिन औसत 8-10 लाख रुपये जमा होते थे. सबसे अधिक राशि
इसी खाते में जमा होते थे. राजधानी में इस बैंक की सात शाखाओं में 17
अप्रैल को करीब 3500 रुपये ही जमा हुए थे. सात भक्तों ने पैसे जमा किये थे.
ये पैसे दसवंद आदि के थे. मुख्य शाखा में मात्र दो भक्तों ने ही पैसे जमा
किये थे. एक भक्त ने 1200 रुपये व दूसरे ने 100 रुपये जमा किये थे. शेष रकम
दूसरी शाखाओं में जमा हुए.
18 अप्रैल को मुख्य शाखा में एक भी भक्त नहीं आया. सामान्य दिनों में
इसमें बाबा के भक्तों की लंबी कतार लगती थी. 250 से ज्यादा वाउचर जमा हो
जाते थे. बैंक ने केवल बाबा के भक्तों के पैसे जमा करने के लिए अलग काउंटर
की व्यवस्था कर रखी थी.
काले पर्स की बिक्री में भी भारी गिरावट : निर्मल बाबा
भक्तों से कहते हैं कि काला पर्स रखा करो. इस कारण सिर्फ रांची में ही काले
पर्स की बिक्री काफी बढ़ गयी थी. करीब 1.4 करोड़ के पर्स और बैग की बिक्री
सिर्फ रांची में होती थी. अब यह भी घट कर हजारों में हो गयी. पर्स के एक
होलसेलर ने बताया : अब एक-दो व्यवसायी ही पहुंचते हैं. उनकी मांग भी काफी
कम होती है. खुदरा विक्रेताओं के पास भी काले पर्स और बैग की बिक्री
इक्का-दुक्का ही हो रही है.
फोटो भी नहीं बिक रहे : अब बाबा की तस्वीरें बिकनी बंद
हो गयी हैं. शहीद चौक, रांची के एक विक्रेता ने कहा : दिन भर बैठे रह जा
रहे हैं. बोहनी नहीं होती.
मीडिया पर भड़के निर्मल बाबा : निर्मल बाबा ने मंगलवार
को अपने समागम में मीडिया पर निशाना साधा. कहा : मीडिया में मेरे खिलाफ
षड़यंत्र चल रहा है. मेरी छवि को गलत तरीके से पेश की जा रही है. फेसबुक का
समागम का वीडियो जारी कर सफाई भी दी है कि आरोप लगाये जा रहे हैं कि सात
हजार लेकर समागम में भक्तों को अगली पंक्ति में बैठाया जाता है, यह सरासर
गलत है. समागम में फिक्सिंग नहीं हो रहा, मेरे विरोधी मीडिया के जरिये
फिक्सिंग कर रहे हैं. समागम में अगली कतार में बैठनेवालों में घाटोटांड़
(झारखंड) से आये दंपति भी थे.
बाबा की संपत्ति की जांच हो : निर्मल बाबा के खिलाफ
बुधवार को धरना दिया गया. धरना पर बैठे लोगों का कहना था कि निर्मल बाबा
अंधविश्वास फैला कर लोगों को ठग रहे हैं. उनकी संपत्ति की जांच की जाये.
उन्हें गिरफ्तार किया जाये. राजधानी के एक प्रमुख बैंक में किसी भी भक्त ने
पैसा जमा नहीं किया
हंगामा, धक्का-मुक्की, चार गिरफ्तार : दिल्ली के
तालकटोरा स्टेडियम में बुधवार को समागम के दौरान निर्मल बाबा के समर्थकों
ने काफी देर तक हंगामा किया. मीडियाकर्मियों से बदसलूकी की. जबरन उन्हें
स्टेडियम के अंदर ले गये और उनके खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया. चैनल वन के
पत्रकार नागेंद्र भाटी के साथ बाबा समर्थकों ने धक्का-मुक्की की. इस
सिलसिले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है.